अपीलेट ट्रिब्यूनल का फैसला माइनॉरिटी शेयरहोल्डर के अधिकारों की जीत: सायरस मिस्त्री

मुंबई. देश के सबसे बड़े कॉर्पोरेट विवाद में नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने बुधवार को सायरस मिस्त्री के पक्ष में फैसला दिया। ट्रिब्यूनल ने कहा कि मिस्त्री को टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाना गलत था, उन्हें फिर से बहाल किया जाए। टाटा सन्स के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए 4 हफ्ते का वक्त है। ट्रिब्यूनल के फैसले को मिस्त्री ने माइनॉरिटी शेयरधारकों के अधिकारों की जीत बताया। टाटा सन्स के बोर्ड ने 2016 में मिस्त्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर चेयरमैन पद से हटा दिया था। मिस्त्री ने इस फैसले को चुनौती दी थी। उनका दावा था कि टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन टाटा कंपनी के बोर्ड मामलों में दखल देते थे। टाटा सन्स मैनेजमेंट ने अल्प शेयरधारकों (माइनॉरिटी शेयरहोल्डर) के हितों को दबाया।


माइनॉरिटी शेयरहोल्डर की कंपनी के संचालन में भूमिका नहीं होती


यहां माइनॉरिटी शेयरहोल्डर का मतलब 50% से कम होल्डिंग वाले शेयरधारकों से है। इनके पास कंपनी के फैसलों में वोटिंग का अधिकार नहीं होता। ये निदेशकों की नियुक्ति भी नहीं कर सकते। मिस्त्री परिवार के पास टाटा सन्स की 18.4% हिस्सेदारी है। वह माइनॉरिटी शेयरधारक होते हुए भी टाटा सन्स का सबसे बड़ा नॉन प्रमोटर शेयरहोल्डर है। टाटा सन्स के 66% शेयर टाटा ट्रस्ट के पास हैं। 11.9% होल्डिंग टाटा ग्रुप की लिस्टेड कंपनियां के पास और 3.7% शेयर अन्य लोगों के पास हैं।


मिस्त्री परिवार टाटा सन्स को पब्लिक से प्राइवेट कंपनी में बदलने के भी खिलाफ था। किसी कंपनी के प्राइवेट होने के बाद शेयर ट्रांसफर पर प्रतिबंध लागू हो जाता है। यानी कोई हिस्सेदार अपने शेयर बेचना चाहे तो बाहरी लोगों को नहीं बल्कि कंपनी को ही बेचने पड़ते हैं। इससे शेयरों की मनचाही कीमत नहीं मिल पाती। टाटा सन्स को प्राइवेट कंपनी बनाने के विरोध की यह भी वजह थी। इस मामले में भी अपीलेट ट्रिब्यूनल का फैसला मिस्त्री के पक्ष में आया। ट्रिब्यूनल ने टाटा सन्स को प्राइवेट कंपनी बनाने को गलत ठहराया है।